स्वप्न अवनी से
(गजल)
स्वप्न अवनी से निकल अब जाग तू, मिहनत की चिंगारी से लगा आग तू ।
नफरते-मर्सिया गाता पपीहा इधर ,
बुलबुल सुना अमन का राग तू ।
जीत का मजा़ संघर्षों की तलब में है,
वक्त के थपेड़ों से ना भाग तू ।
प्रेम नहीं विष भरा मानव के अंदर ,
डस कर मर जाएगा नाग तू ।
मुद्दतों से राधा नाराज है मुझसे ,
दिल जलाने आया है फाग तू ।
इश्क़ का मारा सुकूँ नहीं पाता कहीं,
दिल लगाने से अच्छा ले ले बैराग तू ।
-०-
बुलबुल सुना अमन का राग तू ।
जीत का मजा़ संघर्षों की तलब में है,
वक्त के थपेड़ों से ना भाग तू ।
प्रेम नहीं विष भरा मानव के अंदर ,
डस कर मर जाएगा नाग तू ।
मुद्दतों से राधा नाराज है मुझसे ,
दिल जलाने आया है फाग तू ।
इश्क़ का मारा सुकूँ नहीं पाता कहीं,
दिल लगाने से अच्छा ले ले बैराग तू ।
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सुन्दर रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई है आदरणीय !
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