बस शिकायत नहीं..
(कविता)
हम सब स्वयं ही हैं
अपने भाग्य विधाता
ये जिंदगी खुद ही उलझाई और
सुलझाई भी जाती है।
अपने कर्मों से ही मान अपमान
की राह बनाई जाती है।।
स्वर्ग नर्क हम सब स्वयं ही पाते
है इसी ही धरती पर।
अपने ही हाथों भाग्य की लकीर
बनाई और मिटाई जाती है।।
ये जिंदगी खुद ही उलझाई और
सुलझाई भी जाती है।
अपने कर्मों से ही मान अपमान
की राह बनाई जाती है।।
स्वर्ग नर्क हम सब स्वयं ही पाते
है इसी ही धरती पर।
अपने ही हाथों भाग्य की लकीर
बनाई और मिटाई जाती है।।
-०-
पता:
No comments:
Post a Comment