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Thursday, 16 January 2020

नया साल (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

नया साल

(लघुकथा)
धड़ाम से दरवाजा बन्द करने की आवाज सुनते ही मै समझ गई थी कि आज कुछ हुआ जरूर है निखिल की आदत से वाकिफ़ हूँ ।जरा सा कुछ मन का नही हुआ तो लगता कि सब तलपट करके ही मानेंगे ।
"नीलू कंहा हो भई "
"जी आई "
रसोई से हाथ झाड़ती हुई बाहर आई तो लगभग चिल्लाते हुए निखिल मुझ पर बरसे..........
"और कराओ बिटिया से नौकरी , बिगाड़ा तुम्ही ने है"
"अरे क्या हुआ बताइऐ तो सही" घबराये हुए कहा......I
आज तुम्हारी लाड़ली को मैने तीन चार सहेलियों के साथ सिगरेट पीते देखा है ।बस यही देखना बाकि था और चढ़ाओ सर पर."....
"नही ऐसा नही कर सकती वो.".........
आने दो आज सही बताऊँगा .......
आश्चर्य से निखिल की तरफ देखते हुए नीलू ने कहा आप पर किस मुंह से बचपन से उसने आपको देखा है न रहने दो मै खुद ही.......l
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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