नगर मत बनाओ
(कविता)
मर्यादा पुर्षोत्तम श्रीराम के
भाई लक्ष्मण जी के
चरणों से निकली
जलधारा के किनारे बसी
साहित्यिक नगरी में
न जाने
अब
क्या से क्या हो रहा है ।
मैं असमंजस में हूँ की
जिस नगरी के मैदान में कभी
खेल खेला करता था,
आज वो मैदान भी
बहुत छोटा हो गया है।
आबादी भी बढ़ गई है,
इसका गम नहीं है,
लोगो अब संस्कार भूल गए है
इस बात का गम है।
संस्कार न भूलते तो
ये बुढ़े माँ-बाप,
भीख मांगते नजर नहीं आते।
हमारा वो कुआँ
जिसके पानी से प्यास बुझाते थे
वो आज
खून से सना नहीं होता।
वो नदी पानी पीने योग्य होता,
हमारे तालाबो में बने मंदिर
गिरते ना होते,
और तालाब भी सूखा ना होता,
किसी के तरक्की से लोग
जलते ना होते,
अच्छे लोग मरते ना होते,
शाम होते ही सड़के
सूनी ना होती,
और ना माँ-बाप, बच्चे को
घर से निकलने के लिए
मना करते।
किसी को डर का साया ना होता ।
चौक चौराहो से चौपाल ना गुमते।
बन गया यदि ये
नगरी से नगर
बढ़ जायेंगे अपराध
इसलिये
मैं चाहता हूँ
इस साहित्यिक नगरी को
नगरी ही रहने दो,
नगर मत बनाओ।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)
भाई लक्ष्मण जी के
चरणों से निकली
जलधारा के किनारे बसी
साहित्यिक नगरी में
न जाने
अब
क्या से क्या हो रहा है ।
मैं असमंजस में हूँ की
जिस नगरी के मैदान में कभी
खेल खेला करता था,
आज वो मैदान भी
बहुत छोटा हो गया है।
आबादी भी बढ़ गई है,
इसका गम नहीं है,
लोगो अब संस्कार भूल गए है
इस बात का गम है।
संस्कार न भूलते तो
ये बुढ़े माँ-बाप,
भीख मांगते नजर नहीं आते।
हमारा वो कुआँ
जिसके पानी से प्यास बुझाते थे
वो आज
खून से सना नहीं होता।
वो नदी पानी पीने योग्य होता,
हमारे तालाबो में बने मंदिर
गिरते ना होते,
और तालाब भी सूखा ना होता,
किसी के तरक्की से लोग
जलते ना होते,
अच्छे लोग मरते ना होते,
शाम होते ही सड़के
सूनी ना होती,
और ना माँ-बाप, बच्चे को
घर से निकलने के लिए
मना करते।
किसी को डर का साया ना होता ।
चौक चौराहो से चौपाल ना गुमते।
बन गया यदि ये
नगरी से नगर
बढ़ जायेंगे अपराध
इसलिये
मैं चाहता हूँ
इस साहित्यिक नगरी को
नगरी ही रहने दो,
नगर मत बनाओ।-०-
राम नारायण साहू 'राज'
रायपुर (छत्तीसगढ़)
-०-
No comments:
Post a Comment