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Thursday, 5 November 2020

*ढाई अक्षर हिंदी के* (आलेख) - श्रीमती पूनम दीपक शिंदे

  

*ढाई अक्षर हिंदी के*
(आलेख)
भारत देश कश्मीर से कन्याकुमारी तक विविधताओं से भरा है। इस विविधता में भाषाई विविधता भी एक है। आज भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं किन्तु पूरे देश को जोड़नेवाली एक ही भाषा है - हिंदी । हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है वरन यह एक विचार ,चिंतन और संस्कृति भी है। यह वह भाव है जिसमें हम हँसते, रोते और मुस्कुराते भी हैं ।यह हमारी भावनाओं से जुड़ी हुई भाषा है। यह हमारी संवेदनाओं का संवहन भी करती है। हिंदी हमारी उम्मीदों की भाषा तो है ही साथ ही साथ हमारी जरूरत की भी भाषा है।

हिंदी जनसंपर्क का सरल व सुगम साधन है। इतनी सारी भाषाओं व बोलियों के बीच देश में एक भाषा को सर्वोपरि स्थान मिलना अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। आज़ादी के बाद जब संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँध कर रखने की आवश्यकता महसूस हुई तो यह उत्तरदायित्व हिंदी को दिया गया। तभी से 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा के पद पर आसीन किया गया। हिंदी एक जीवित भाषा है। नए-नए शब्दों को समाहित करने का गुण ,बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का हौसला इसकी जीवंतता का प्रमाण है। हिंदी भाषा का साहित्य अत्यंत समृध है। काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास, जीवनी, निबंध, गीत, डायरी, संस्मरण आदि हर विधा में हिंदी का साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके अलावा बहुत सी विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अनुवाद भी हिंदी भाषा में किया गया है। यह अनुवाद इस बात का सूचक है कि हिंदी सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा है

भाषा हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है। ईश्वर ने मनुष्य मात्र को ही इस अनुपम गुण से सुशोभित किया है। कबीरदास जी ने भाषा को 'बहता नीर' कहा है। आज भी भाषा बहता नीर बनकर मनुष्य की सेवा कर रही है। वैसे ही जैसे नदियों के पास बड़ी- बड़ी संस्कृतियाँ विकसित हुई वैसे ही भाषा रूपी नदी के पास मानव और साहित्य का विकास हुआ। भाषा ने मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन और उत्साहवर्धन भी किया है। हिंदी भाषा में अपनत्व और प्रेम में नवरस का संचार हुआ है। सिर्फ हिंदी ही पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है।
       अगर हम मुंबई की बात करें तो भारत के किसी भी महानगर की अपेक्षा सबसे अधिक बहुभाषियों की संख्या मुंबई में है।मुब्ई में बोल-चाल के रूप में बोली जाने वाली बंबईया हिंदी शामिल है। जिसमें अधिकांश शब्द और व्याकरण तो हिंदी के ही हैं। किन्तु इसमें हिंदी के अलावा मराठी और अंग्रेजी के शब्द भी होते हैं। मुंबई में रोजगार की तलाश में लाखों लोगों का आना - जाना लगा रहता है। आने वाला हर व्यक्ति अपनी भाषा लेकर आता है। परन्तु यहाँ आने पर औरों से बातचीत करने के लिए दूसरों की भाषा को भी जाने- अनजाने बोलचाल के दौरान स्वीकारना पडता है। यही वजह है कि यहाँ सभी भाषाओं का संगम देखने को मिलता है । इसलिए एक प्रकार इसे भाषायी कुंभ कहा जा सकता है।

हिंदी भाषा अपनी सहजता, सरलता के कारण ही सब की प्रिय बन बैठी है। गैर हिंदी भाषी लोग भी हिंदी के गाने और हिंदी फिल्में देखना बेहद पसंद करते हैं। भाषा की सहजता के कारण ही इस मायानगरी में सभी का गुजर-बसर आसानी से हो जाता है। यही बहुभाषाएँ एवं संस्कृतियाँ हिंदी के महत्व को बढ़ाती हैं। हम कहते हैं कि कोस-कोस पर पानी बदले ,पाँच कोस पर बानी। इस उक्ति के आधार पर भी स्थान परिवर्तन से भाषा में बदलाव सम्भव है।

हिंदी की महत्ता और लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि पूरा विश्व हमारी हिंदी से प्रेम करता है। तभी तो दुनिया के कोने - कोने में हिंदी बोलने वाले और इससे प्रेम करने वाले लोग पाये जाते हैं । हिंदी के ढाई अक्षर हमें और हमारी संस्कृति को पूर्णता प्रदान करते हैं। 

यदि हम हिंदी के महत्व और सम्मान की बात करें तो यह अपने आप में ठोस व प्रमाणिक ढंग से अपनी जगह खड़ी है। इसे अपनाकर कोई भी अपने वजूद को बनाये रख सकता है। इसने सबको पाला है, सँवारा है । इसने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया। आज भी हिंदी सम्पूर्ण राष्ट्र में गौरव प्राप्त भाषा के रूप में पहचानी जाती है, क्योंकि इसने सागर की तरह सबको अपने में समाहित किये हुये आगे बढ़ने का काम कर रही है।
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श्रीमती पूनम दीपक शिंदे
मुंबई (महाराष्ट्र)

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