दिवाली
(मुक्तक कविता)मैं एक कुम्हार
चाक पर करता जाँ न्योछार
मेरे सपने सजते जाते
जैसे जैसे मिट्टी ले आकार
मेरे घर भी मने दिवाली
आए मिठाई और फलाहार
चाक पर जल्दी हाथ चलते
ख़ुशियों का ना कोई पार
बिक जाए सारा सामान
भर जाए मेरे भी भंडार
मन मे सपने सजाए
करते जाए सारे कार
नीलम की भी है यही हसरत
इसकी सुने सब परिवार
मत करना इसको रुसवा
कर रही यही प्रार्थना बारमबार
दीए जलाओ ख़ुशियाँ मनाओ
चारों ओर लाओ नई बहार
सबके घर मने दिवाली
मन से दिए बनाए कुम्हार
चाक पर करता जाँ न्योछार
मेरे सपने सजते जाते
जैसे जैसे मिट्टी ले आकार
मेरे घर भी मने दिवाली
आए मिठाई और फलाहार
चाक पर जल्दी हाथ चलते
ख़ुशियों का ना कोई पार
बिक जाए सारा सामान
भर जाए मेरे भी भंडार
मन मे सपने सजाए
करते जाए सारे कार
नीलम की भी है यही हसरत
इसकी सुने सब परिवार
मत करना इसको रुसवा
कर रही यही प्रार्थना बारमबार
दीए जलाओ ख़ुशियाँ मनाओ
चारों ओर लाओ नई बहार
सबके घर मने दिवाली
मन से दिए बनाए कुम्हार
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