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Saturday, 2 November 2019

दो लघुकथाएँ (लघुकथा) - माधुरी शुक्ला

सुकून
(लघुकथा)
आशु और दोस्तों ने गर्मी की छुट्टियों में कुछ दिन समुद्र किनारे मनाने का कार्यक्रम बनाया। बहुत उत्साह के साथ जब वहां पहुंचे तो गंदगी देख उत्साह ठंडा पड़ गया। आशु और साथियों ने वहां और गंदगी फैला रहे लोगों को रोकने की कोशिश भी की। उनकी यह कोशिश नाकाम रही। फिर आशु ने साथियों से कहा हमें ही कुछ करना पड़ेगा। सब भिड़ गये गंदगी साफ करने में। दो घंटे बाद जब समुद्र का किनारा बहुत कुछ साफ हो गया तो आशु और साथियों को सुकून महसूस हुआ। ऐसा सुकून जो समुद्र किनारे की गई खूब सारी मस्ती में भी शायद नहीं मिलता।
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प्यार का रंग
(लघुकथा)
शादी के बाद आज पहली होली है। चारू मायके में है। मां सुनीता बार-बार उससे कह रही हैं ससुराल में फोन लगा कर सबको होली का प्रणाम कर ले। पति उमेश से नाराज होकर मायके आई चारु को लग रहा है कि वह आखिर फोन लगाए तो कैसे। फिर उमेश ने भी तो चारू की एक न सुनी थी। फिलहाल परिवार बढ़ाने की बजाय अपनी शिक्षा बढ़ाने पर जोर दे रही थी पर उमेश और उसके परिवार के लोग चाहते थे कि जल्दी से उन्हें पोता-पोती का मुंह देखने को मिले। फोन लगाए कि ना लगाए यह विचार कर ही रही थी कि अचानक बेल बजी उसने दरवाजा खोला तो सामने उमेश खड़ा था। चारू दौड़ती हुई अंदर गई रंग की थैली लेकर आई।
दूरियां मिट चुकी थीं। दोनों ने बहुत करीब आकर बड़े प्यार से एक-दूसरे को रंग दिया। 
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माधुरी शुक्ला 
कोटा (राजस्थान)


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1 comment:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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