इंसानियत हुई लहुलुहान है
(कविता)
मन्दिर मस्जिद का झगड़ा है
राम रहीम तो एक समान है
खून से खून जुदा हुआ
इंसानियत हुई लहूलुहान है
हर कोई राजनीति की बिसात पर
खेल रहा उठापटक की गोलियाँ
नैतिकता की धज्जियां उड़ी
बिखर गई हैवानियत को चोलियाँ ।
कहीं फूँक दी बसें तो
कहीं रेल के डिब्बे जले
तो कहीं हो जाती फिर फिर
पत्थरों की बरसात
तो कहीं मस्जिद धूं धूं दिखी,
तो कहीं मंदिर ने खो दी अपनी बात
इस्लाम को इससे क्या मिलेगा
राम रहीम तो एक समान है
खून से खून जुदा हुआ
इंसानियत हुई लहूलुहान है
हर कोई राजनीति की बिसात पर
खेल रहा उठापटक की गोलियाँ
नैतिकता की धज्जियां उड़ी
बिखर गई हैवानियत को चोलियाँ ।
कहीं फूँक दी बसें तो
कहीं रेल के डिब्बे जले
तो कहीं हो जाती फिर फिर
पत्थरों की बरसात
तो कहीं मस्जिद धूं धूं दिखी,
तो कहीं मंदिर ने खो दी अपनी बात
इस्लाम को इससे क्या मिलेगा
और हिन्दू धर्म क्या पाएगा
खाई में पड़े पड़े कब तक करते रहोगे ,
एवरेस्ट पर चढ़ जाने का
उदघोष ।
अब आदमी को अपनी ही छाया से लगता है डर
कि होश को भी न जाने कब आएगा होश ।।
क्या कहूं ,क्या सोचू
सोच भी देती जवाब नही
ऐसी असमंजस में ,मैं हो गया परेशान हूं ।
गीता में मेरी जान बसी है
नहीं छोड़ सकता मैं कुरान हूं
देखो ये कैसी अंधो की बस्ती है
खुल गई जहाँ चश्मों की दुकान है।
एवरेस्ट पर चढ़ जाने का
उदघोष ।
अब आदमी को अपनी ही छाया से लगता है डर
कि होश को भी न जाने कब आएगा होश ।।
क्या कहूं ,क्या सोचू
सोच भी देती जवाब नही
ऐसी असमंजस में ,मैं हो गया परेशान हूं ।
गीता में मेरी जान बसी है
नहीं छोड़ सकता मैं कुरान हूं
देखो ये कैसी अंधो की बस्ती है
खुल गई जहाँ चश्मों की दुकान है।
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