दांव सारे ही
(ग़ज़ल)
दांव सारे ही हार बैठा हूँ
ले के कितना उधार बैठा हूँ
वो सितारा गुमान करता है
जिसकी किस्मत सँवार बैठा हूँ
हक़ जरा तूँ जता कमाई पर
कब से लेकर पगार बैठा हूँ
कैसे कह दूँ रहनुमा उसको
जख्म खाकर हजार बैठा हूँ
शे'र कैसे 'अमित ' मुकम्मल हों
बहरें सारी बिसार बैठा हूँ
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