(गीत)
तेरी सोने की जमीं है तेरा चांदी का गगन।
मेरे मेहबूब वतन, ऐ मेरे महबूब वतन ।।
*******
तुझपे कुर्बान मेरीजान दिल की हर धडकन।
एक तू ही तेरी पहचान, कहता मेरा मन ।।
करले स्वीकार मेरा प्यार मेरा ये वंदन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
*****
मुझको मखमल सी ये हरियाली बहुत भाती है।
मेहकी मेहकी हुई हर शाख नजर आती हैं ।।
गुनगुनाते हैं सुबह शाम तेरे रंगी चमन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
******
तेरी मिट्टी तेरा पानी तेरी चंचल वायु ।
मुफीद कितनी है मोहक ये तेरी जलवायु।।
द्वारा यौवन के खड़ी जैसे नवेली दुल्हन ।
मेरे महबूब वतन ,ऐ मेरे महबूब वतन ।।
*******
झिलमिलाते हुए इन रंगीं नजारों की कसम ।
खिलखिलाते हुए अंबर के सितारों की कसम।।
पूरी दुनिया को भा गया है तेरा चैनो अमन ।
मेरे मेहबूब वतन ,ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
*******
आग सीने में लिए घूमता है जल प्यारा ।
सिंचाई करता है करता है दूर अंधियारा।।
दूर करती है दर्द सारे तेरी गंगो जमन ।
मेरे मेहबूब वतन ए मेरे महबूब वतन ।।
******
तेरे खेतों में मोतियों की फसल क्या कहने।
नीली झीलों के ये रंगीन कमल क्या कहने।।
रसीले झरनों का करता है पवन आलिंगन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
******
जिन्दगी धन्य हो जाए मेरी तस्कीन मिले।
राष्ट्र की अपने अगर दफ्न को जमीन मिले।।
तेरे आँचल का मिले औढ़ने को मुझको कफन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।। -0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
तेरी सोने की जमीं है तेरा चांदी का गगन।
मेरे मेहबूब वतन, ऐ मेरे महबूब वतन ।।
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तुझपे कुर्बान मेरीजान दिल की हर धडकन।
एक तू ही तेरी पहचान, कहता मेरा मन ।।
करले स्वीकार मेरा प्यार मेरा ये वंदन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
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मुझको मखमल सी ये हरियाली बहुत भाती है।
मेहकी मेहकी हुई हर शाख नजर आती हैं ।।
गुनगुनाते हैं सुबह शाम तेरे रंगी चमन ।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
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तेरी मिट्टी तेरा पानी तेरी चंचल वायु ।
मुफीद कितनी है मोहक ये तेरी जलवायु।।
द्वारा यौवन के खड़ी जैसे नवेली दुल्हन ।
मेरे महबूब वतन ,ऐ मेरे महबूब वतन ।।
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झिलमिलाते हुए इन रंगीं नजारों की कसम ।
खिलखिलाते हुए अंबर के सितारों की कसम।।
पूरी दुनिया को भा गया है तेरा चैनो अमन ।
मेरे मेहबूब वतन ,ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
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आग सीने में लिए घूमता है जल प्यारा ।
सिंचाई करता है करता है दूर अंधियारा।।
दूर करती है दर्द सारे तेरी गंगो जमन ।
मेरे मेहबूब वतन ए मेरे महबूब वतन ।।
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तेरे खेतों में मोतियों की फसल क्या कहने।
नीली झीलों के ये रंगीन कमल क्या कहने।।
रसीले झरनों का करता है पवन आलिंगन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।।
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जिन्दगी धन्य हो जाए मेरी तस्कीन मिले।
राष्ट्र की अपने अगर दफ्न को जमीन मिले।।
तेरे आँचल का मिले औढ़ने को मुझको कफन।
मेरे मेहबूब वतन ऐ मेरे मेहबूब वतन ।। -0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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