गुरु
(कविता)कुर्बान हुए हर देश भक्त की,
रुह अभी भी गाती है।
'भारत माँ की जय' कहने की,
गूँज सुनाई देती है।।
इस देश कि हर कहानी वो,
रग-रग में ज्योत जलाती है।
और देख के उंचे तिरंगे को,
इस जिगर मे जान आती है।।
भाषाये भले हि अलग अलग,
पर सोच यही कहलाती है।
मानवताही है धरम यहा का,
यही यहा कि जाती है।।
पुरखोने खूब बना दिया,
कुदरत भी बहुत सजाती है।।
ये देश नही, ये जन्नत है,
अब दुनिया भी कह जाती है।।
ऐसे ही रहे मेरा देश सदा,
हर बात यहां की भाती है।
दुश्मन की भी मिट्टी मिटाने को,
हर एक की चौड़ी छाती है।।
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पता:
राजू चांदगुडे
पुणे (महाराष्ट्र)
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Jay hind
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