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Saturday, 25 January 2020

मिट्टी में मिल जानी है (कविता) - सरिता सरस



मिट्टी में मिल जानी है
(कविता)
मिट्टी की काया को इक दिन 
मिट्टी में मिल जानी है !

मर जायें ना लगने देंगे 
माँ तेरे आंचल पे दाग ,
तेरे दामन से निकली 
मेरी हर एक कहानी है !
मिट्टी की काया को इक दिन 
मिट्टी में मिल जानी है !

घर-घर आग लगाने वाले
देशद्रोहियों सुन लो तुम !
सब्र-बंध टूटे ना अपना ,
उससे पहले गुन लो तुम!
शान तिरंगे की रखना 
वीरों की अमिट निशानी है !
मिट्टी की काया को इक दिन 
मिट्टी में मिल जानी है !

जर्रा - जर्रा पूछ रहा है 
हमसे उस जननी का दर्द ,
हया नहीं तेरी आँखों में 
बस पानी ही पानी है !
मिट्टी की काया को इक दिन 
मिट्टी में मिल जानी है !

बाँध राखियाँ हाथों में बहनों का 
दिल भर आया था ,
जो सीमा पर खून बहा माता का 
कर्ज चुकाया था ,
लाल लहू से सींचा जिसने
यह धरती वीरानी है !
मिट्टी की काया को इक दिन 
मिट्टी में मिल जानी है !
-०-
पता:

सरिता सरस

गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

-०-


***
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2 comments:

  1. अच्छी कविता है , शुभकामनाएं ।

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  2. अच्छी कविता है , शुभकामनाएं ।

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