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Saturday, 25 January 2020

गणतंत्र उबल रहा है (कविता) - श्रीमती सरिता सुराणा




गणतंत्र उबल रहा है
(कविता)
गणतंत्र उबल रहा है,
जनतंत्र सुलग रहा है।
मेरे देश का प्रजातंत्र
आज़ आग उगल रहा है।
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में
तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा फैलाई जा रही
बात-बात में बसें और रेलगाड़ियां जलाई जा रही
कानून व्यवस्था की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही
पता नहीं ये सब कौन कर रहा है?
गणतंत्र उबल रहा है,
जनतंत्र सुलग रहा है।
मेरे देश का......
कहीं शाहीन बाग की सड़क बंधक बनाई जा रही
कहीं 'कश्मीर की मुक्ति' की तख्तियां दिखाई जा रही
कहीं 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारे लगाए जा रहे।
देश का युवा वर्ग दिग्भ्रमित होता जा रहा है,
पता नहीं ये सब कौन कर रहा है?
गणतंत्र उबल रहा है,
जनतंत्र सुलग रहा है।
मेरे देश का प्रजातंत्र.......
फीस वृद्धि के विरोध में जेएनयू उबल रहा है
छात्र वर्ग मारपीट और गुंडागर्दी पर उतर रहा है
पुलिस बल डंडे के बल पर आक्रोश उगल रहा है
देश का मीडिया आग में घी डाल रहा है।
पता नहीं ये सब कौन कर रहा है?
गणतंत्र उबल रहा है,
जनतंत्र सुलग रहा है।
मेरे देश का प्रजातंत्र......
ये क्या हो रहा है, ये क्यों हो रहा है?
कौन है कर्ता-धर्ता, किसके इशारे पे हो रहा है?
है ये अबूझ पहेली, मेरा भारत सुलझा रहा है।
मेरा देश बदल रहा है, देश का मिज़ाज बदल रहा है।
पता नहीं ये सब कौन कर रहा है?
गणतंत्र उबल रहा है,
जनतंत्र सुलग रहा है।
मेरे देश का प्रजातंत्र
आज़ आग उगल रहा है।
-०-
श्रीमती सरिता सुराणा
हैदराबाद (तेलंगाना)
-०-

***
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