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Saturday, 25 January 2020

बलिदानी (कविता) - गोविन्द सिंह चौहान


बलिदानी
(कविता)
सुन कहानी बलिदानों की
हर आँख भर आती हैं..
आजादी की खुशियां सदा
युद्धों पर चलकर आती हैं...।

रोती,राह तकती,थकती फिर
जगती,सिसकती-आहें भरती हैं..
ममता की सब ख़्वाहिशें मरती
दुःख दर्द से मां की छाती भरती है..।

बंकर में रह करता पहरेदारी
रक्षक बन हर हाल रखी खुद्दारी थी..
जख़्म जब भरे सीने में गोली से
आँसू भी मोती बने,मौत भी हारी थी..।

खबरें बनती चन्द राशि तमगों की
रोता छोड़ वीर चला,बातें रही बलिदानी की...
किस हाल लड़ा था लाल,यह कहानी थी...
मेले शेष रहे चिता पर, जय जयकार बलिदान की।

नेताओं को अहसास नहीं, शहीद क्या होते हैं
शब्दों के तूफान उठाते उनके बेटे महफ़ूज़ होते हैं
याद शहीदों की बिसराकर,नसीहतें दे जाते हैं
संसद के बयानों से,सर सैनिक के झुक जाते हैं...।

वरण कर मृत्यु का, भारत का गौरव लिख जाते हैं
ये मत पूछना दर्द कितना है,सेज पर सो जाते हैं
चन्द फूलों की माला पहन वीर सपूत कहलाते हैं
तस्वीरों में स्मृति बन, बलिदानी बन जाते हैं...।।
-०-
गोविन्द सिंह चौहान
राजसमन्द (राजस्थान)


-०-

***
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1 comment:

  1. शहीदों के बलिदान पर एक सार्थक ओजस्वी रचना के लिए बधाई।

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