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Tuesday, 1 December 2020

और नहीं (लघुकथा) - मधुकांत

 

और नहीं
(लघुकथा)

पत्नी-मैं तो कल भी रात भर जागती रही।
पति-क्यों?
 पत्नी-रात बारह बजे दीपेंद्र का फोन आना था ।वह एक बजे तक नहीं आया। फिर तो नींद उचट  गई।
पति-बुढ़ापे में यह भी भारी रोग है, एक बार नींद उचट गई तो हो गई सारी रात काली। 
     (तभी फ़ोन की घंटी बजी) 
पति-लो आ गया,,,,, हेलो  दीपेंद्र,,, कल तुम्हारा फोन नहीं आया इसलिए तुम्हारी मां सारी रात जागती रही। दीपेंद्र-पापा करोना मैं अमरजेंसी ड्यूटी लग गई थी। बहुत भयानक बीमारी है,,, न जाने कौन, कब उठ जाए ,,,,,,आप कैसे हो?
 पिता-अपने देश में सब ठीक है ।बेटे तुम्हें ही अमेरिका में जाकर धन कमाने की लगी थी। 
दीपेंद्र-कुछ नहीं पापा सब मृगमरीचिका है ।एक बार अपने देश की सीमाएं खुल जाए तो विदेश की ओर मुंह भी नहीं करूंगा ।
पिता-अच्छा विचार है ।भारत माता  ने तुझे डॉक्टर बनाया और सेवा कर रहा है विदेशी लोगों की,,,।
 दीपेंद्र-(सुबकने लगता है )बस पापा ,,,सब समझ गया,,। उधर तुम अकेले, इधर मैं ,,,,क्या करेंगे इस धन का ,,,,,,और नहीं, पापा ,,,,,,,बस और नहीं,,,।
-०-
पता:
मधुकांत
रोहतक (हरियाणा)
-०-
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