मौन साँझ
(कविता)
सुबह मुखर
मौन सांझ
तपती दोपहरी
रात बांझ
-------
समाधिस्थ पेड़
वीरान छांव
निहारें पखेरू
ना कांव-कांव
-------
सर्पिली हवा
सूरज क्रुद्ध
दोनों हुए
सबके विरुद्ध
-------
व्याकुल सभी
ग्रीष्म का असर
पंखे - कूलर
सबकुछ बेअसर
-------
चोटी से एडी
पसीने की धार
तन के कपड़े
करें तीखी मार
-------
कवि की कलम
उकेरे चित्र
गर्मी के रंग
बड़े विचित्र
-०-
No comments:
Post a Comment