बैर
(लघुकथा)
"अहा मम्मी! मजा आ गया। कितना स्वादिष्ट होता है ना यह बेर। खट्टा... मीठा..." खाते हुए मीतिबोली।
"हां बेटा! यह छोटा सा फल बेर स्वादिष्ट होने के साथ-साथ फायदेमंद भी बहुत है।"
"अच्छा! पर ममा कितनी अच्छी बात है ना, अपने घर के पीछे खेत में यह पेड़ लगा है लेकिन इसकी डालियां अपने और आसपास के सभी घरों की छत पर आ गई हैं। इसी से रोज मस्त-मस्त बेर खाने को मिलते हैं और वह खेत वाली आंटी भी कितनी अच्छी है ना जो सब को बेर खाने की परमिशन दे देती है।"
"हां बेटा सो तो है."
"देखा नहीं उनके खेत में कितने सारे पेड़ लगे हुए हैं"
"हां बेटा यह पेड़ एक फलदार एक फलदार पेड़ है एक बार लगने के बाद इसे किसी विशेष देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि फल यह साल में एक बार ही देता है लेकिन इसकी पत्तियां पशुओं के लिए बहुत पोस्टिक आहार होती है। मिति बेटा इसकी कांटेदार झाड़ियों से ढाणियों की, खेतों की, चारा-भंडारे की बाड़ भी बनाई जाती है"
"बाड़ क्या होता है मम्मी?"
"बाड़ यानी अस्थाई छोटी-छोटी कांटे की दीवार इसकी झाड़ियों से बना सकते हैं। वर्षा ऋतु के समाप्त होते-होते इसमें फूल आ जाते हैं। जनवरी-फरवरी में इसके फल पक कर तैयार हो जाते हैं। राजस्थान में तो यह पाया ही जाता है पर स्थानों पर भी यह वृक्ष मिलता है, और इसकी 300 से ज्यादा किसमें होती हैं। छोटे से लेकर बड़े आकार में यह मिलता है। आजकल तो यह छोटे छोटे अमरूद के आकार के भी बाजार में देखने को मिलते हैं।"
"लेकिन मुझे तो यही लाल पीला खट्टा मीठा बेर अच्छा लगता है । मैं तो सोचती हूं इसकी गुठली अपने घर के सामने वाले गार्डन में डाल दूं।
"अरे बेटा, यह एक पेड़ है। इसे फैलने के लिए बहुत जगह चाहिए।"
"ठीक है मम्मी, तो फिर मैं इसे बोनसाई बनाकर अपने गार्डन में लगाऊंगी।"
"अच्छा लगा लेना बेटा।"
"पर एक काम अच्छा हो गया, आज बातों बातों में इस छोटे से बेर के बारे में इतनी बड़ी बड़ी बातें मुझे पता चल गई।"
-0-
No comments:
Post a Comment