कौन सा योग करें
(नवगीत)
मन की खिड़की खोल तनिक सी ,घुटन न डाले मार .
एक आसरा मन के दर पर ,
बैठा है दम तोड़ .
भाव भोथरे नवाचार से ,
रहते नाक सिकोड़ .
मन मंदिर यूँ शोर शराबा ,
हो मछली बाजार .
चाहत है अब आत्महंता ,
प्रेम खड़ा लाचार .
अपने ही अब अपनों से ही ,
खाए बैठे खार .
ओढ़ तमस को खड़ा चौक पर ,
देखो अब उजियार .
खुद की हँसी उड़ाता फिरता ,
बनकर जोकर क्रोध .
डरा रहा अंजाम दिखाकर ,
साहस को अब बोध .
डुबा रहा है नाव स्वयं ये ,
कैसा खेवनहार .
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