चाय
(कविता / गीत)
ये चाय तो इक बहाना है,
तेरे संग मुझको आना है।
कहें कुछ अपने दिल की,
कुछ तेरी सुनके आना है।
जिंदगी की भूल कटुता को,
सपनों को जी के आना है।
ये चाय तो इक बहाना है----२
छिपा है दर्द सीने में जो ये,
कुछ तुझको भी दिखना है।
रुकी जाने कब से आंखों में,
उन्हें बहाने का इक बहाना है।
दिल पर हैं बोझ कई भारी हैं,
कुछ उनको भी तो हटाना है।
ये चाय तो इक बहाना है-----२
मिलते ही नहीं ऐसे तो तुम,
तुमसे मिलने का बहाना है।
मुझसे पूछोगे तुमको ही क्यों?
दर्देदिल सबको नहीं सुनाते हैं।
आओ बैठें कहें अपनी अपनी,
दिल को सुकून तो दिलाना है।
ये चाय तो इक बहाना है---२
ये चाय तो इक बहाना है,
तेरे संग मुझको आना है।
कहें कुछ अपने दिल की,
कुछ तेरी सुनके आना है।
जिंदगी की भूल कटुता को,
सपनों को जी के आना है।
ये चाय तो इक बहाना है----२
छिपा है दर्द सीने में जो ये,
कुछ तुझको भी दिखना है।
रुकी जाने कब से आंखों में,
उन्हें बहाने का इक बहाना है।
दिल पर हैं बोझ कई भारी हैं,
कुछ उनको भी तो हटाना है।
ये चाय तो इक बहाना है-----२
मिलते ही नहीं ऐसे तो तुम,
तुमसे मिलने का बहाना है।
मुझसे पूछोगे तुमको ही क्यों?
दर्देदिल सबको नहीं सुनाते हैं।
आओ बैठें कहें अपनी अपनी,
दिल को सुकून तो दिलाना है।
ये चाय तो इक बहाना है---२
-०-
डॉ.सरला सिंह 'स्निग्धा'
डॉ.सरला सिंह 'स्निग्धा'
दिल्ली
चाय पर चर्चा अच्छी लगी। बधाई हो बहनजी !
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