जीवन मांगल्य है
(कविता)
उदात्त उर निर्मल नेह, जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
नहीं कोई छोटा-बड़ा,सब एक समान हो ।
उदात्त उर निर्मल नेह, जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
नहीं कोई छोटा-बड़ा,सब एक समान हो ।
ऊँच-नीच दूर हो,सबका एक-सा मान हो ।।
सता का अभिमान नहीं,बल्कि विनम्र भाव हो ।
हर हाल, परिस्थिति में सबके प्रति समभाव हो ।
उदात्त उर, निर्मल नेह ......…..
भूखों को भोजन हो,पथिकों को दीपशिखा हो ।
सत्कर्म ही हमारे भाग्य की जीवन रेखा हो ।।
माता-पिता का आदर ही जीवन-दर्पण हो ।
छोटे-बड़े का समादर ही धर्म को अर्पण है ।।
सता का अभिमान नहीं,बल्कि विनम्र भाव हो ।
हर हाल, परिस्थिति में सबके प्रति समभाव हो ।
उदात्त उर, निर्मल नेह ......…..
भूखों को भोजन हो,पथिकों को दीपशिखा हो ।
सत्कर्म ही हमारे भाग्य की जीवन रेखा हो ।।
माता-पिता का आदर ही जीवन-दर्पण हो ।
छोटे-बड़े का समादर ही धर्म को अर्पण है ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह............
प्रकृति प्रेम हो परमात्मा में विश्वास हो ।
दृष्टि ऐसी हो कण-कण में प्रभु का वास हो ।।
निर्मल हृदय-दर्पण में ही सारा जग समाया है ।
पवित्रता की आँखों में भला-बुरा समाया है ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह..............
कंचन काया में कभी कालिमा का न दाग़ हो ।
विशुद्ध मन में अशुद्धता का कभी न दाग़ हो ।।
मन-मंदिर की मूर्ति मानवीयता से शोभित हो ।
दिल-दीपक की दीप्ति दिव्यता से दीपित हो ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच,नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
प्रकृति प्रेम हो परमात्मा में विश्वास हो ।
दृष्टि ऐसी हो कण-कण में प्रभु का वास हो ।।
निर्मल हृदय-दर्पण में ही सारा जग समाया है ।
पवित्रता की आँखों में भला-बुरा समाया है ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह..............
कंचन काया में कभी कालिमा का न दाग़ हो ।
विशुद्ध मन में अशुद्धता का कभी न दाग़ हो ।।
मन-मंदिर की मूर्ति मानवीयता से शोभित हो ।
दिल-दीपक की दीप्ति दिव्यता से दीपित हो ।।
उदात्त उर, निर्मल नेह जीवन मांगल्य है ।
उन्नत सोच,नत मस्तक जीवन साफल्य है ।।
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