जब कवि करता है
सृजन
नव साहित्य का
जीवन के उदगीत का,
तो बिसार, स्वयं को
हो जाता है, तल्लीन
संसार को राह दिखाने को
नव पीढ़ी को, जीवन
मूल्य समझाने को,
लिप्त हो जाता है
पात्रो की संवेदना में
उस समय कवि, स्वयं
नहीं विद्यमान रहता
स्वयं में,
उसकी लेखनी
मां सरस्वती ,के संसर्ग से
रच डालती है,
नवाचार
गढ़ बैठती है
नव उत्थान, नव प्रभात।
-०-
पता:सोनिया सैनी
जयपुर (राजस्थान)
-०-
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Bahut sundar rachana
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