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Thursday, 5 March 2020

धारा ही बदल गई (कविता) - राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'

धारा ही बदल गई
(कविता)
धारा ही बदल गई
न जाने क्यों,मालूम नहीं
रिटायर्ड आदमी को ही
हर कोई बेकार में,
बेकार सा ही समझता है।।
कामकाजी इंसान भी
उससे दूर भागता है।
क्योंकि वह हर समय अपनी ही
हांकता और फांकता है।।
पत्नी कहती 
सारा दिन कुर्सी क्यों तोड़ते हो।
हर समय मोबाइल में, 
आँखे ही क्यों फोड़ते हो।।
जाओ बाज़ार से, 
कुछ जरूरी सामान ही ले आओ।
बहुरानी कहती, 
साथ में मुन्नू को भी तो घुमा लाओ।।
अरे!रिटायर क्या हुआ,
मेरी तो सरकार ही चली गई।
पत्नी जी भी मुझको भुला,
बहू के साथ ही पूर्णतया मिल गईं।।
जब भी टी०वी०चलाता हूं, 
बच्चे रिमोट ही छीन लेते हैं।
मैं चाहूं देखना न्यूज़,
आस्था वो पोगो,कार्टून लगाते हैं।
फिल्म देखूँ या गाना सुनूं,
कहते हैं,क्या जवानी आ गई।
योगा करूँ,तो कहते हैं,
अब जवान हो कर क्या करोगे।
रिटायर क्या हुआ,
मेरे तो जीवन की धारा ही बदल गई।
पड़ा हूं, मंझधार में,
किश्ती मेरी न जाने,कहाँ,किस ओर बह गई।।
न जाने क्यों,हर बार,
मेरी ही बात रह जाती है, अनसुनी।
अब तो जब तक जीऊंगा,होती रहेगी
खुद से खुद की, तनातनी।।
-०-
पता: 
राजकुमार अरोड़ा 'गाइड'
बहादुरगढ़(हरियाणा)


-०-

***
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