सूने पनघट
(सजल)
सूने पनघट चुप चोपालें गाँवों में|
हम-तुम होली ईद मनालें गाँवों में|
मक्का की हे रोटी बोली चूल्हे से,
आ सरसों का साग बनालें गाँवों में|
खेत, मडैया, ताल, बगीचा देख लिए,
थोडी सी गौ-धूल उडालें गाँवों में|
(सजल)
सूने पनघट चुप चोपालें गाँवों में|
हम-तुम होली ईद मनालें गाँवों में|
मक्का की हे रोटी बोली चूल्हे से,
आ सरसों का साग बनालें गाँवों में|
खेत, मडैया, ताल, बगीचा देख लिए,
थोडी सी गौ-धूल उडालें गाँवों में|
घर-आंगन में पानी-पानी वर्षा का,
कागज़ की फिर नाव चलालें गाँवो में|
मिल जायेगी सब लोगों की खैर-खबर,
सर्दी है चल अलाव जलालें गाँवों में।
मोबाइल पर कैसी बातें सावन की,
आओ सखियो झूला डालें गांवो में।
पशु पंक्षी क्या पेड़ 'मृदुल' से है बोले,
खूब जियें हम मिटटी वाले गाँवो में|
-०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
कागज़ की फिर नाव चलालें गाँवो में|
मिल जायेगी सब लोगों की खैर-खबर,
सर्दी है चल अलाव जलालें गाँवों में।
मोबाइल पर कैसी बातें सावन की,
आओ सखियो झूला डालें गांवो में।
पशु पंक्षी क्या पेड़ 'मृदुल' से है बोले,
खूब जियें हम मिटटी वाले गाँवो में|
-०-
पता:
मृदुल कुमार सिंह
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