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Monday 10 August 2020

चले गए बादल (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

चले गए बादल
(कविता)
आए तो थे, किन्तु गरज कर,
चले गए बादल.

सघन स्वरूप हवाओं का रुख,
गति के सँग घूमा,
मानसून से मिला, नमी का,
भौतिक मुख चूमा,
इंद्रदेव के, मंत्रसूत्र में,
ढले गए बादल.

तेज हवा के, राजमार्ग से,
आसमान चौका,
मड़ई, चूक गई अपनी छत,
छाने का मौका,
ऊपर सूरज, नीचे धरती,
दले गए बादल.

बादल घिर तो गये, कहीं भी,
झींसी नहीं झरी,
फूलों की अनमनी पँखुड़ियाँ,
रोती झिरी-परी,
किस मौसम विभाग के द्वारा,
छले गए बादल.

बस अड्डे के पीछेवाला,
नाला अंध पड़ा,
जलनिकास की, बाधित नाली,
रस्ता गंध सड़ा,
कालिख, कथित प्रगति के मुँह पर,
मले, गए बादल.-०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


***
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