माँ तो माँ है
(कविता)
देख लेती है,पहचान लेती है,झपट लेती है
बच्चों के हृदयतल मे फँसे दुख के कीडे को।।
माँ की बाँहें चाहे कितनी ही झुरीदार,
पतली और कमजोर हों
पकड लेती है,संभाल लेती है,
पकड लेती है,संभाल लेती है,
संबल देती है अपने बच्चों को
मजबूती से अपने हड्डी वाले हाथों से,
मजबूती से अपने हड्डी वाले हाथों से,
और खडा करती है फिरसे जग मे।।
माँ का हृदय चाहे दवाइयों और जीवन आघातों ने
माँ का हृदय चाहे दवाइयों और जीवन आघातों ने
किया हो कमजोर पर पढ लेती है
दूर से ही बच्चों की उखडती साँसों को
लेती है सीने से लगाऔर पल मे अपने हृदय की घडकनो
से सामान्य करती उनका हृदयाघात।।
माँ के पैर चाहे कितने ही कमजोर हों
पहचान लेती हैं, पदचापों से,
लेती है सीने से लगाऔर पल मे अपने हृदय की घडकनो
से सामान्य करती उनका हृदयाघात।।
माँ के पैर चाहे कितने ही कमजोर हों
पहचान लेती हैं, पदचापों से,
बच्चों के उत्साह, निरूत्साह को
पहुँच जाती है हिम्मत की लाठी टेककर,
पहुँच जाती है हिम्मत की लाठी टेककर,
निकटतम देने बचपन वाला दबंग उत्साह ।।
माँ का संतुलन चाहे पलभर भी स्थिर नहीं रहता पर
देख लेती है बच्चों की आँखों में.स्वाद की भूख
पहुँच जाती है रसोई मे बनाने
माँ का संतुलन चाहे पलभर भी स्थिर नहीं रहता पर
देख लेती है बच्चों की आँखों में.स्वाद की भूख
पहुँच जाती है रसोई मे बनाने
फिर से मीठा परांठा और गुड हलवा शानदार।।
-०-
डा. नीना छिब्बर-०-
जोधपुर(राजस्थान)
-०-
***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें
No comments:
Post a Comment