"छुटकारा हो बस्ते का "
(कविता)
भविष्य के जिन कंधों पर ,
भार सुरक्षित रहेगा देश का ।
उन्हीं नन्हें कंधों पर है क्यों,
भारी बोझ लदा बस्ते का ।।
अब इन नन्हें-नन्हें बच्चों के,
बचपन पर तरस कौन करे।
बाल मनोवैज्ञानिक भी सोचें।
कैसा हाल हो शिक्षा नीति का।।
किताबों के बोझ तले फिर,
दब जाता बच्चों का बचपन ।
बच्चों की दुनियाँ को भी,
मौका दो स्वच्छंद होने का।।
खेल-खेल में भी बच्चे सीखेंगे,
जीवन की सारी उपयोगी बातें।
स्कूल-ट्यूशन तक भारी बस्ता,
मौका दें प्रकृति संग विचरण का।।
बच्चे स्वयं करके कुछ सीखें,
ऐसी आशा रखें इन बच्चों से ।
बाल मन फन-फूड-फाईट से,
सपने संजोएं अपने जीवन का।।
अब बस्ता कैसे छोटा हो,
शिक्षाविद, मिल मंथन करें।
नन्हैं बच्चों का उपकार करें,
छुटकारा मिल जाए बस्ते का!!
-०-
भार सुरक्षित रहेगा देश का ।
उन्हीं नन्हें कंधों पर है क्यों,
भारी बोझ लदा बस्ते का ।।
अब इन नन्हें-नन्हें बच्चों के,
बचपन पर तरस कौन करे।
बाल मनोवैज्ञानिक भी सोचें।
कैसा हाल हो शिक्षा नीति का।।
किताबों के बोझ तले फिर,
दब जाता बच्चों का बचपन ।
बच्चों की दुनियाँ को भी,
मौका दो स्वच्छंद होने का।।
खेल-खेल में भी बच्चे सीखेंगे,
जीवन की सारी उपयोगी बातें।
स्कूल-ट्यूशन तक भारी बस्ता,
मौका दें प्रकृति संग विचरण का।।
बच्चे स्वयं करके कुछ सीखें,
ऐसी आशा रखें इन बच्चों से ।
बाल मन फन-फूड-फाईट से,
सपने संजोएं अपने जीवन का।।
अब बस्ता कैसे छोटा हो,
शिक्षाविद, मिल मंथन करें।
नन्हैं बच्चों का उपकार करें,
छुटकारा मिल जाए बस्ते का!!
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