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Friday, 15 January 2021

हरियाली फिर से छाएंगी (कविता) - डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'

   

हरियाली फिर से छाएंगी
(लघु एकांकी)
सूखे पत्तें, सूनी-सी डाली
गुम हो रही , है हरियाली।

घांस सूख कर हुईं उदास 
प्राणी कोई न आएं पास।

टहनी ने अपना रंग है बदला
गिरगिट नहीं, रहा अब पहला।

पंछी सारे घुम रहें हैं 
एक-एक दाना ढूंढ रहें हैं। 

पेड - पत्ते छलनी हुएं हैं 
 पत्थर, पर्वत दिख-छुप रहें हैं। 

राह में जंगल,अब सूख चुका है 
पता वर्षा का पूछ रहा है। 

उम्मीद है बनीं, 
बरखा फिर आएगी।
हरियाली इस जंगल में,
फिर से छाएगी।
-०-
डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'
अकोला (महाराष्ट्र)
-०-

***
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