हरियाली फिर से छाएंगी
(लघु एकांकी)
सूखे पत्तें, सूनी-सी डाली
गुम हो रही , है हरियाली।
घांस सूख कर हुईं उदास
प्राणी कोई न आएं पास।
टहनी ने अपना रंग है बदला
गिरगिट नहीं, रहा अब पहला।
पंछी सारे घुम रहें हैं
एक-एक दाना ढूंढ रहें हैं।
पेड - पत्ते छलनी हुएं हैं
पत्थर, पर्वत दिख-छुप रहें हैं।
राह में जंगल,अब सूख चुका है
पता वर्षा का पूछ रहा है।
उम्मीद है बनीं,
बरखा फिर आएगी।
हरियाली इस जंगल में,
फिर से छाएगी।
डॉ.राजेश्वर बुंदेले 'प्रयास'
अकोला (महाराष्ट्र)
-०-
वाह! सुन्दर रचना है।
ReplyDelete