कुछ लोग जो जीते हैं
(कविता)कुछ लोग जो जीते हैं , खेतों पै रमा करते हैं
उगाते हैं फसल नेह की , ईमान जमा करते हैं
भोर की किरण फूटी , लगी बजने बैलों की घंटी
गैया लगी है रंभान , प्यासे खेत और खलिहान हैं
सौंधी - सौंधी गंध को , माटी है अकुलानि
कहे बार - बार बारे , वारि ही पुकारी है
पुलक प्रफुल्ल कहे , धरती को अंग - अंग
साँचो - साँचो वीर मेरो , याहि हलधारि है
निज खून - पसीने से , दुनिया की दुआ करते हैं
तपे जेठ की दुपहरी , तके साँझ और सकारी
लौट आये श्रमहारी , पंखा झले घरवारी है
झूठ लागे किलकारी , नैन लाडो भरे वारि
रात करे जब ब्यारी , हिस्से आवे ना तरकारी है
जिंदगी की आस लिये , साँस - साँस प्यास लिये
सींचते सँवारते , जीवन की फुलवारी है
गम सौ - सौ मिले फिर भी , खुश हो के जिया करते हैं
खेत की मड़ैया में , गाँव की अमरैया में
ठंडी पुरवैया में , स्वर्ग का सुख पाते हैं
खेतों में बाल पके , हँसे मन थके - थके
नई सरगम बनाते हैं
वहीँ कहीं छाँव तले , पत्तों की बाँसुरी से ,
नई राग छेड़ जाते हैं
अमृतमय बोलों से , रसगान किया करते हैं
कुछ लोग जो जीते हैं , खेतों पै रमा करते हैं
उगाते हैं फसल नेह की , ईमान जमा करते हैं l
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