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Saturday, 16 January 2021

कुछ लोग जो जीते हैं (कविता) - डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'

 

कुछ लोग जो जीते हैं
(कविता)
कुछ लोग जो जीते हैं , खेतों पै रमा करते हैं
उगाते हैं फसल नेह की , ईमान जमा करते हैं 

भोर की किरण फूटी , लगी बजने बैलों की घंटी 
गैया लगी है रंभान , प्यासे खेत और खलिहान हैं 
सौंधी - सौंधी गंध को , माटी है अकुलानि 
कहे बार - बार बारे , वारि ही पुकारी है 
पुलक प्रफुल्ल कहे , धरती को अंग - अंग 
साँचो - साँचो वीर मेरो , याहि हलधारि है 
निज खून - पसीने से , दुनिया की दुआ करते हैं 

तपे जेठ की दुपहरी , तके साँझ और सकारी 
लौट आये श्रमहारी , पंखा झले घरवारी है 
झूठ लागे किलकारी , नैन लाडो भरे वारि 
रात करे जब ब्यारी , हिस्से आवे ना तरकारी है 
जिंदगी की आस लिये , साँस - साँस प्यास लिये 
सींचते सँवारते , जीवन की फुलवारी है 
गम सौ - सौ मिले फिर भी , खुश हो के जिया करते हैं 

खेत की मड़ैया में , गाँव की अमरैया में 
ठंडी पुरवैया में , स्वर्ग का सुख पाते हैं 
खेतों में बाल पके , हँसे मन थके - थके 
नई सरगम बनाते हैं 
वहीँ कहीं छाँव तले , पत्तों की बाँसुरी से ,
 नई राग छेड़ जाते हैं 

अमृतमय बोलों से , रसगान किया करते हैं 
कुछ लोग जो जीते हैं , खेतों पै रमा करते हैं 
उगाते हैं फसल नेह की , ईमान जमा करते हैं l 
-०-
डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित)
कटनी (म. प्र.)


***
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