✍️किसान/अन्नदाता✍️
(कविता)
धरती पुत्र संत-सा है किसान ,
अरु परिश्रम का पर्याय किसान ।
अवनी पर का उदार अन्नदाता ,
जीव मात्र का है जीवन दाता ।
खेत-खलिहान है जीवन तर्पण ,
फसल उपहार समाज को अर्पण ।
आठों प्रहर है प्रकृति का साथी ,
सुख-दुख में भी अपनों का साथी ।
आँधी-तूफान सीने में धरता ,
ठंड-धूप,बारिश से नित लडता ।
भाल का तिलक खेत की मिट्टी ,
रज-स्वेद से रिक्त तन की मिट्टी ।
स्वेद परिश्रम है देह की शोभा ,
अरु भाल पर की अनेरी आभा ।
दिल में थामे दीनता की हूक ,
कभी नहीं खोला है अपना मुख ।
बाहों में कर्म,मन में प्रभु प्रीत ,
किया संसार को जीवन समर्पित ।
सुख-समृद्धि का किया उसने त्याग ।
दान-पुण्य का अनूठा अनुराग ।
तप से श्रेष्ठ है उसका वो कर्म ,
साधु-संतों से है उमदा धर्म ।
जीयो व जीने दो के है संस्कार ।
अन्नदाता से ही जीवित संसार ।।
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