(कविता)
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ परतुम आगे मैं पीछे।
निंदाओं के बीच खड़ी है
कब से काया मेरी।
सच्ची जग की हंसीं रही है
झूठी माया मेरी।
बस सांसों का आना-जाना
मुझको खींचें पीछे।
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
कौन चला है कब चलता है?
भला किसी के साथ।
अन्त निकट जब आता है तो।
मलते रहते हाथ।
अपने बाहु बल पर फिर क्यों?
दुनिया से तू खीझे।
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
टाल रहे हो अभी वक्त को
फिर टालेगा वक्त।
देह शून्य जब हो जायेगी
जम जायेगा रक्त।
किसके आगे भाग सकोगे
कौन रहेगा पीछे?
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
कौन चला है कब चलता है?
भला किसी के साथ।
अन्त निकट जब आता है तो।
मलते रहते हाथ।
अपने बाहु बल पर फिर क्यों?
दुनिया से तू खीझे।
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
टाल रहे हो अभी वक्त को
फिर टालेगा वक्त।
देह शून्य जब हो जायेगी
जम जायेगा रक्त।
किसके आगे भाग सकोगे
कौन रहेगा पीछे?
जीवन स्वयं मृत्यु के पथ पर
तुम आगे मैं पीछे।
-०-
सुरजीत मान जलईया सिंह
दुलियाजान (असम)
-०-
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