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Tuesday, 28 January 2020

ये कैसा ख्वाब है (कविता) - सुमति श्रीवास्तव


ये कैसा ख्वाब है
(कविता)
सवाल बना हर जवाब है,
ये कैसा ख्वाब है।
पहरेदारों ने साथ चोरों का दिया ,
खुद ही रुसवा सरे बाजार किया ।
अपने हाथों कत्ल तीमारदारों नें,
क्या करे फरियाद खिदमतगारों में।
काफिर ,जब बन बैठा नवाब है।
ये कैसा ख्वाब है।।।

आज मंजिलें ढूँढ़ती खुद राहों को,
हँसी छुपाती जल्लाद की गुनाहों को।
हरमद पेशोपेश में है वक्त ,
नन्ही चिडि़या के पहरे है सख्त ।
सय्याद का अपना रुआब है।
ये कैसा ख्वाब है।।

है चमन विरान,बागबाँ सो गया ,
पसरा पतझड़ सावन कहीं खो गया।
मसली पैरों से कलियाँ पुकारती ,
कहाँ है माली मेरा ,कहाँ छटा बहार की।
आने को यहाँ क्यों खिंजा बेताब है।।
ये कैसा ख्वाब है।।-०-
सुमति श्रीवास्तव 
जौनपुर (उत्तरप्रदेश)



***
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