ताक धिना धिन
(कविता)'वन्यजीवन पर कविता- मस्त हुआ वनवासी जीवन'
बरगद , पीपल , आम , नीम
बट , हरे बांस, महुआ
झूम रही तरु लिपटी बेलें
झूम रहा कहवा
वनखण्डों में ढूंढो दुर्दिन !
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
सींग , पंख की पगड़ी सिर पर
पग में घुंघरू , गले में ढोल
मस्ती भरा थिरकता जीवन
गूंज रहे झांझर के बोल
अपनी रातें अपने हैं दिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
पाल रखे हैं मुर्गे तीतर
सोते पत्ते गुदड़ी सींकर
फूंक रहे हैं आग प्रेम की
महुआ की मदिरा पीकर
नहीं देखते सपने अनगिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
हम पाखी उन्मुक्त गगन के
नहीं चाहिये कोई बंधन
हरे भरे जंगल वन - प्राणी
से ही है अपना जीवन
मगन रहें मस्ती में पल छिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
जंगल की है रीत अनोखी
प्रीत अनोखी जंगल की
हरीतिमा के बीच सोई है
पीत अनोखी जंगल की
महके महुआ बहके यौवन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
घुमड़ - घुमड़ घन उठी घटायें
बरसी जंगल घाटी में
अल्हड़ वन कन्या झूमी
पावस की उन्मादी में
नहीं चाहिये हमको आरक्षण
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन..........
बासंती मौसम हो या फिर
होली ईद दिवाली हो
नहीं देखते अपनी जेबें
कभी भरी या खाली हो
बल खाये शरमाये नागिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन .... ........
होली ईद दिवाली हो
नहीं देखते अपनी जेबें
कभी भरी या खाली हो
बल खाये शरमाये नागिन
ताक धिना धिन नाच रहा मन
ताक धिना धिन .... ........
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