कद्र करो अपने जनकों की
(कविता)
मात पिता की गोदी में हम,
लोगों पलकर बड़े हुए।
उनके एहसानों के पैरों ,
पर चलकर के खड़े हुए।।
कर्ज नहीं लोगों जीवन भर,
हम उतार वो पाएंगे ।
याद हमेशा मात पिता यूँ,
हमको पल पल आएंगे ।।
******
दूध पिलाया है जो माँ ने,
उससे सदा निरोग रहे ।
दूध नहीं वो तो जीवन है,
जो जीवन हम भोग रहे ।।
जिसने अंगुली पकड़ हमारी,
भू पर चलना सिखलाया ।
क्या उस जैसा साया हमने,
कभी कहीं पर भी पाया ।।
*******
रात रात भर किया जागरण,
ऐसा माँ का प्यार मिला ।
माँ पाई तो सब कुछ पाया,
हमको ये परिवार मिला ।।
पिता न होते साथ अगर तो,
सोचो ,बोलो क्या होते ।
अपमानों को विष पीते और,
छिपकर इधर उधर रोते ।।
*******
जनको से हमने जमीन भी
और हौसला पाया है ।
मंजिल का सुख इसीलिए तो,
हम तक चलकर आया है ।।
कद्र करें अपने जनकों की,
काबिल हम कहलाते हैं ।
"अनन्त"जिनके कारण ही जग,
में पहचाने जाते है।।
-0-
अख्तर अली शाह 'अनन्त'
मात पिता की गोदी में हम,
लोगों पलकर बड़े हुए।
उनके एहसानों के पैरों ,
पर चलकर के खड़े हुए।।
कर्ज नहीं लोगों जीवन भर,
हम उतार वो पाएंगे ।
याद हमेशा मात पिता यूँ,
हमको पल पल आएंगे ।।
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दूध पिलाया है जो माँ ने,
उससे सदा निरोग रहे ।
दूध नहीं वो तो जीवन है,
जो जीवन हम भोग रहे ।।
जिसने अंगुली पकड़ हमारी,
भू पर चलना सिखलाया ।
क्या उस जैसा साया हमने,
कभी कहीं पर भी पाया ।।
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रात रात भर किया जागरण,
ऐसा माँ का प्यार मिला ।
माँ पाई तो सब कुछ पाया,
हमको ये परिवार मिला ।।
पिता न होते साथ अगर तो,
सोचो ,बोलो क्या होते ।
अपमानों को विष पीते और,
छिपकर इधर उधर रोते ।।
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जनको से हमने जमीन भी
और हौसला पाया है ।
मंजिल का सुख इसीलिए तो,
हम तक चलकर आया है ।।
कद्र करें अपने जनकों की,
काबिल हम कहलाते हैं ।
"अनन्त"जिनके कारण ही जग,
में पहचाने जाते है।।
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अख्तर अली शाह 'अनन्त'
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