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Monday, 17 February 2020

मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो (कविता) - अजय कुमार व्दिवेदी


मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो 
(कविता)
मैं राष्ट्र भक्ति में डूबा हूँ! मुझे राष्ट्र भक्त ही रहने दो।
खूनी बोले कातिल बोले! जिसका जो मन वो कहने दो।

हो मेरे भारत का विकास! बस इतना ध्येय हमारा हो।
जन जन के मुख से निकले जो! भारत माँ का जयकारा हो।

माँ के चरणों से सुन्दर! कभी स्वर्ग नहीं हो सकता है।
भारत माँ की सेवा करना! ब्यर्थ नहीं हो सकता है।

पर कुछ मानवता के दुश्मन! जो शाहीन बाग में बैठे हैं।
धूर्त दगाबाजों के कहने पर! अपनों से ही ऐंठे है।

बस उनसे इतना कहना है! दिल्ली कश्मीर नहीं होगा।
अब राणा का भाला चमकेगा! अकबर का शमशीर नहीं होगा।

थे सहिष्णु हम हिन्दू पर! असहिष्णु का नाम मिला।
दया दिखाई हिन्दू ने पर! हिन्दू ही बदनाम मिला।

CAA का हो विरोध! या NPR NRC हो।
हिन्दू सिक्ख ईसाई हो! या फिर कोई फ़ारसी हो।

जो भारत में शरणार्थी है! हम क्यों न उनकों नागरिकता दें।
जो अपनी अस्मत बचाने आए ! हम क्यों न उन्हें अस्मिता दें।

जो संसद में होता आया! क्या शाहीन बाग से होगा अब।
क्या हिन्दू राष्ट्र ये भारत! शाहीन बाग से चलेगा अब।

हम सेक्युलर थे हम सेक्युलर है! हमें सेक्युलर ही तुम रहने दो।
गंगा यमुना की तरह हमें भी! अविरल ही तुम बहने दो।

यूँ बार बार फूंफकार न छोड़ो! हमें फन कुचलना आता है।
पर महादेव के कारण हमको! दूध पिलाना भाता है।

पर क्रोधित हो जाएं तो हम! जन्मेजय भी बन जाते हैं।
यज्ञ कुण्ड में आहुति फिर! सर्पों की दिलवाते है।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-



***
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