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Sunday, 29 March 2020

रिश्तों की डोर (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


रिश्तों की डोर
(कविता)
रिश्तों की डोर नाजुक ही होती है ।
सहज-सद्भाव से ही बंधी होती है।।

कुछ रिश्ते हल्के-भारी भी होते हैं ।
रिश्तों की उम्र छोटी-बड़ी होती है।।

रिश्ते तो आम तौर पर रिश्ते होते हैं।
रिश्ते निभाने की नीयत ही होती है।।

रिश्ते कुछ क्षणिक और अमिट होते हैं।
रिश्तों की प्रक्रिया भय-प्यार से होती हैं।।

रिश्ते भी आजकल नाम के ही होते हैं ।
कुछ रिश्तों की पहचान नाम से होती हैं।।

रिश्ते भी व्यक्तित्व व चरित्र से बनते हैं।
खून के रिश्ते की उम्र तो ताउम्र होती है।।

रिश्ते घर-समाज, देश दुनियाँ से जोड़ते हैं।
रिश्तों की दुनियाँ धूप-छांव जैसी होती है।।

रिश्ते कर्म-धंधे विविध भूमिका से होते हैं।
'नाचीज'रिश्ते की बुनियाद स्वार्थी होती है।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

***
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1 comment:

  1. बहुत -बहुत बधाई है आदरणीय ! सुन्दर कविता लिखने के लिये।

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