गीतिका
(पद्य)
आशाओं के दीप जलाने का यह अवसर है,
अब तो प्रिय मुस्कान खिलाने का यह अवसर है ।
वक्त़ रहा प्रतिकूल सदा ही, पर हो ना मायूस,
अब उजड़ा संसार बसाने का यह अवसर है ।
व्देष, बैर,कटुता ने बांटा भाई-भाई को,
वैमनस्य-दीवार ढहाने का यह अवसर है ।
लेकर हाथ चलें हाथों में,मिलें क़दम क़दम से,
चैन-अमन का गीत बजाने का यह अवसर है ।
पीर,दर्द,ग़म और व्यथाओं का है यह आलम,
मानव-मन को आज सजाने का यह अवसर है ।
महके मानवता का घरअब,अपनापन बिखरे,
नेह,प्रेम के भाव निभाने का यह अवसर है ।
बहुत हो चुका तंद्रा तोड़ो,उठो 'शरद'अब सारे,
अब तो हमको कुछ कर दिखलाने का यह अवसर है ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
-०-
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