माँ की याद
(कविता)
दुःख के समय आँसू गिरने पर
तुम ही तो माँ
पोंछती थी .
मीठी स्वर में
लोरी गाकर सुलाती थी
नींद न आने पर ,
और तुम पूरी रात
ताकते रहती थी मुझे
नींद की सपने मेरी
पूरी करवाती थी .
तुम ही तो माँ
वर्षा की पानी के जैसी
मुझ पर प्यार वर्षाती थी
आपने न खाकर
मुझे भरपेट खिलाती थी
सभी तरह की कष्टों से
मुझे बचाती थी .
अब बदल गया है युग
दया- प्यार का कोई
मूल्य नहीं है .
प्यारा रिश्तों में
तीखापन आ गया है
अब मनुष्य मुलाकातों के साथ ही
मार- काट मचा रहे है
बाढ़ की पानी जैसी
इंसानी खून बहा रहे है
इन सबसे बावजूद भी ,माँ
तुम बदली नहीं हो
मुझ पर प्यार की
वर्षा करना भूले नहीं हो
अब तुम्हारी गैर मौजूदगी में
तुम्हे याद कर
छाती भींग रहा मेरा
आँसू से -०-
पता -
चंद्रमोहन किस्कू
पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)
भावनाओं की संतुलित प्रस्तुति। भाषा में लिंग का ध्यान नहीं रखा गया है। संपादन में सुधार अपेक्षित।
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