खौफ/भय
(कविता)
है भयभीत बेटियाँ पौरुषता के विचार से,कहीं प्रताड़ित है घर में,कहीं त्रस्त व्यभिचार से।
खौफ नहीं इन दुष्टों को कानून और संविधान से,
बाहर न निकलो,कपड़े ढंग से पहनों
न करो श्रृंगार,न किसी से बात करो
सारे बंधन माने बेटी,
क्यों वंचित रखते बेटों को इन संस्कार से।।
कुछ तो धर्म सिखाओ,नारी का महत्व बताओं,
जो साइड जगाती मन में यौनाचार ,हटा दो उनके मोबाइल से।
बेटों पर भी रख नियंत्रण,बेटियों को भयमुक्त करो।।
बेटों में भी भय जगाना होगा,पाप पुण्य के परिणाम से।।
हो सुरक्षित समाज,खुद कदम उठाना होगा,
भ्रष्ट नेता,नहीं उम्मीद न्याय की सरकार से।।
न बहन,बेटी को बनाओ बंधक परिवार में
जहाँ नहींसुरक्षित बहन बेटी ,आग लगा दो ऐसे संसार में।
बेटियों को पंख दो,झाँसी की रानी पैदा होने दो,
वरना जीके क्या करेगी बेटी ऐसे संसार में।। -०-
पता:
गीतांजली वार्ष्णेय
बरेली (उत्तर प्रदेश)
-०-
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