*** हिंदी प्रचार-प्रसार एवं सभी रचनाकर्मियों को समर्पित 'सृजन महोत्सव' चिट्ठे पर आप सभी हिंदी प्रेमियों का हार्दिक-हार्दिक स्वागत !!! संपादक:राजकुमार जैन'राजन'- 9828219919 और मच्छिंद्र भिसे- 9730491952 ***

Thursday, 9 April 2020

कुछ दिन तो तुम और ठहरते (कविता) - शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

कुछ दिन तो तुम और ठहरते
(कविता)
आये हो तो, जाओगे ही,
छोटी लेकिन बात सही है,
यह बस्ती है, गाँव तुम्हारा,
कुछ दिन तो तुम और ठहरते.

माटी के घर, नहीं रहे अब,
ईंटों की है, नई भूमिका,
अभी पलस्तर, नहीं हुआ है,
थिरकी तक है, नहीं तूलिका,
तूलम-तूल, खड़ीं दिवारें,
नहीं सफेदी के, पग धमके,
सूर्यदेव के, किरण पंख तक,
पेड़ों पर हैं, नहीं छ्हरते.

मान रहा यह, अभी शहर की,
नहीं खेलतीं, सुख-सुविधाएँ,
अब भी घर-घर, दुहने जाते,
लछुमन काका, भैंसें-गायें,
किन्तु यहाँ अब, रोज टहलतीं,
मुमकिन होने की गतिविधियाँ,
अमन-चैन के, घी-जौ-फल-तिल,
समिधाओं के कुंड लहरते.

बदले हुए समय में, सच है,
गाँव-मुहल्ले, कुछ शहराए,
बीत गए दिन, दुःख सावन के,
उत्पीड़न के, घन छितराए,
वर्तमान पर, उस बचपन की,
यादों के पल, कीर्तिमान ध्वज,
नीलगगन के उच्चमान तक,
लहर-लहरकर, विविध फहरते.०-
पता: 
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ (उत्तरप्रदेश)
-०-


***
मुख्यपृष्ठ पर जाने के लिए चित्र पर क्लिक करें 

1 comment:

  1. बहुत बहुत बधाई है आदरणीय! सुन्दर कविता के लिये।

    ReplyDelete

सृजन रचानाएँ

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

गद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०

पद्य सृजन शिल्पी - नवंबर २०२०
हार्दिक बधाई !!!

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित

सृजन महोत्सव के संपादक सम्मानित
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ