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Monday, 16 December 2019

'बतियाना' (हास्य व्यंग्य कविता) - ओम प्रकाश कताला

'बतियाना'
(हास्य व्यंग्य कविता)
ये फूल मेरा, ये डाली मेरी।
तितली टकराए, भंवरा बतलाए ।
देखो अपना हाल बतलाए ।
कभी झाड़-झंकाड़ में रहते ।
दोनों आपस में बतियाए ।
ये फूल मेरा, ये डाली मेरी।
आपस में फिर टकराए ।
कभी कांटों से पंख पड़वाए,
कभी पैरों में कांटे चुभ जाए।
दोनों आपस में बतियाए ।
ये फूल मेरा, ये डाली मेरी ।
तू-तू ,मैं-मैं, देख दोनों शरमाए।
माली को देख, फिर बतियाए।
मानव हम नहीं, जो आपस में टकराए।
दोनों आपस में बतियाए।
ये फूल मेरा, ये डाली मेरी।
दोनों मिलकर नया संदेश दिखलाएं ।
मानव सीखे हम से, नई रीत चलाएं ।
छोटा जीवन हमारा, हमसे प्रीत लगाए।
दोनों आपस में बतियाए।
-०-
ओम प्रकाश कताला
सिरसा (हरियाणा)
-०-

***
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