गृह लक्ष्मी
(कविता)
रक्तिम चरण, धवल वस्त्र पर,
छोड़े छाप स्व आगमन पर,
गृह में आ गई गृह लक्ष्मी।
स्वागत व उल्लास समाया,
आरती सजी कलश रखवाया,
ढोल ,नगाड़े ,ताशों के संग,
चावल उड़ेल कलश के चरण
घर खुशियां लाई गृहलक्ष्मी।
घर को बनाएं मंदिर प्यारी,
घर पर अपनी खुशियां वारी
नेम प्लेट न हिस्सेदारी,
वजूद को तरसे वह बेचारी,
कहाई फिर भी गृहलक्ष्मी।
स्वा को तज हम को अपनाया,
छोड़ भेद जब अपना पराया,
औरों का घर स्वर्ग बनाया,
गृहलक्ष्मी तब नाम है पाया,
-०-
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