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Monday, 16 December 2019

कुएँ की प्यास (कविता) - शिखा सिंह

कुएँ की प्यास
(कविता) 
कुअाँ जो पडा़
मुह औंधे प्यासे
के मानिन्द बाहर ,
उस इंतजार में
कोई तो आये ,
मुझे भूल गये सब
मैं भी प्यासा हूँ
तुम्हारी तरह
बतियाने को सुनने को
वो सखियाँ छोड ग ई मुझको
जो कभी अपने सुख दु:ख
मेरे कंधों पर मटका रख
कहती थीं
अब कहाँ फुरसत
मेरे लिए उनको
उनके सौंदर्य को निहारने कीं
ललक जाग उठती है
जब साँझ को बैठतीं
मेरी ओट में
और हँसी ठिटोली करतीं
अब मेरी जगह ले ली
गैरों ने ठंडा पानी देकर
मैं दुखी हूँ अकेलेपन से
मैं भी तो ताजा शुद्ध पानी देता
मुख मोड़कर क्यों चले गये मुझसे सभी
क्यों नीम की छाँव को
भी अनदेखा कर दिया
जो निरोगी रख
देते सौन्दर्य की छवि
मेरे होने को नकार कर
छोड दिया
अकेले असहाय पडा़
मेरा गला सूख रहा
मुझे उफनने न दो
मरने न दो
बात करो मुझसे
बाहर निकलो मेरे पास बैठो
बूढा हो गया हूँ
अब तो अकेला मत छोडो़ मुझे
-०-
पता 
शिखा सिंह 
फतेहगढ़- फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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