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Tuesday, 3 November 2020

गुरु (कविता) - अनवर हुसैन

 

गुरु
(कविता)
मन पे  मृदुलता थाप लगा के
माटी से जीव कलश  बना के
तम  में ज्योति - पुंज  बता के
भ्रम में सत्य का ज्ञान करा के
*जो प्रतिपल आयाम बनाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

परमार्थ  का  संवाहक बना के
आशाओं  में  पल्लवन  ला के
जीवन  रेखा  में  रंग  चढ़ा  के
कर्तव्य - पथ  हमें  दिखला के
*जो जीवन - पथ का प्रदाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

सुसंस्कारों  का  बोध करा के
प्रगति - पथ की राह दिखा के
प्रतिपल  स्वार्थ से परे हटा के
मानवता का अवबोध करा के
*जो खुद से परिचित कराता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*

मनभावों को कागज पर लाके
जीवन - रस में  ज्ञान मिला के
नैतिक  मूल्यों से हमें सजा के
कोरे कागज पर लक्ष्य बना के
*हमें मन मानवता सिखलाता है*
*वह  'गुरु' भगवान कहलाता है*

संबंधों का  मधु - पान करा के
विद्या प्रदाता हमें स्वयं बना के
हर्ष,प्रेम,त्याग की भेंट चढ़ा के
संस्कृति का आचरण सिखाके
*जो सभ्यता को आगे बढ़ाता है*
*वह 'गुरु ' भगवान कहलाता है*

विकट  क्षणों  में 'धैर्यता ला के
कंटको  में  सुमन  दिख ला के
सागर तल छट में  रत्न बता के
जीवन  का  सार  हमें  बता के
*जो कर्म - योगी  बन  जाता  है*
*वह 'गुरु 'भगवान  कहलाता है*
-०-
पता :- 
अनवर हुसैन 
अजमेर (राजस्थान)

***
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