गुरु
(कविता)
मन पे मृदुलता थाप लगा के
माटी से जीव कलश बना के
तम में ज्योति - पुंज बता के
भ्रम में सत्य का ज्ञान करा के
*जो प्रतिपल आयाम बनाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*
परमार्थ का संवाहक बना के
आशाओं में पल्लवन ला के
जीवन रेखा में रंग चढ़ा के
कर्तव्य - पथ हमें दिखला के
*जो जीवन - पथ का प्रदाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*
सुसंस्कारों का बोध करा के
प्रगति - पथ की राह दिखा के
प्रतिपल स्वार्थ से परे हटा के
मानवता का अवबोध करा के
*जो खुद से परिचित कराता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*
मनभावों को कागज पर लाके
जीवन - रस में ज्ञान मिला के
नैतिक मूल्यों से हमें सजा के
कोरे कागज पर लक्ष्य बना के
*हमें मन मानवता सिखलाता है*
*वह 'गुरु' भगवान कहलाता है*
संबंधों का मधु - पान करा के
विद्या प्रदाता हमें स्वयं बना के
हर्ष,प्रेम,त्याग की भेंट चढ़ा के
संस्कृति का आचरण सिखाके
*जो सभ्यता को आगे बढ़ाता है*
*वह 'गुरु ' भगवान कहलाता है*
विकट क्षणों में 'धैर्यता ला के
कंटको में सुमन दिख ला के
सागर तल छट में रत्न बता के
जीवन का सार हमें बता के
*जो कर्म - योगी बन जाता है*
*वह 'गुरु 'भगवान कहलाता है*
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