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Saturday, 9 November 2019

सद्भाव बाक़ी रहे देश में (ग़ज़ल) - मुनव्वर अली 'ताज'


सद्भाव बाक़ी रहे देश में
(ग़ज़ल)

याद करता है जो उसको होकर मगन
नाचती है धरा नाचता है गगन

किस हृदय ने किया इस विधा का चयन
रक्त पीने लगी आस्था की अगन

कर लिया शब्द ने भाव का आचमन
नित्य झरने लगे अश्रुओं के सुमन

वन लगा लीजिये हर नगर में सघन
इस तरह से प्रदूषण का होगा निधन

जब लगी चूमने काग़ज़ों को क़लम
चूमते ही ग़ज़ल का हुआ आगमन

चाहिए काव्य मेंं धार तो कीजिए
शब्द का, भार से, सार से संगठन

कैसे सद्भाव बाक़ी रहे देश में
'ताज' चिंतित हैं व्याकुल हैं, चिंतन मनन
मुनव्वर अली  'ताज' 
उज्जैन -म. प्र.

-0-


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