बेटी
(लघुकथा)
"त्यागी जी,क्या हुआ ?"
" जी,बेटी "
"ओह ! "
"त्यागी जी,घर क्या आया ?
"जी,प्यारी सी बेटी "
"ठीक है"
"त्यागी जी,नया मेहमान क्या है,बेटा या बेटी ?"
"बेटी"
"डोंट माइंड,चलेगा "
"त्यागी जी,क्या खुशख़बरी है ?"
"जी ,लक्ष्मी आई है "
"नाइस,जब लड़की आ ही गई है,तो यही सोचना सही होगा ।"
बहुत देर से त्यागी का मित्र पाल यह सब सुन रहा था ।अंत में उससे रहा नहीं गया,तो पूछ बैठा--"यार त्यागी,तुम्हें हुआ तो बेटा है,पर तुम सबको बेटी क्यों बता रहे हो ? "
"वह इसलिए प्रिय मित्र कि मैं इन नारी-मुक्ति व नारी सशक्तिकरण के संचालकों की असलियत को पहचान सकूूं ।" त्यागी ने टका- सा जवाब दिया ।-०-
प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
-०-
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