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Tuesday, 17 March 2020

गौरया (कविता) - सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'

गौरया
(कविता)
मेरे घर की मुंडेर पर गौरैया रहती थी।
रोज सबेरे अपनी भाषा में,आके वो कुछ कहती थी।
चीं चीं चूं चूं करती थी वह, रोज मांगती दाना पानी।
गौरैया को देख मुझे,
आती बचपन की याद कहानी।
आती थी वो नील गगन से,
झुंडों में पंख पसारे।
कभी फुदकती घर आंगन में,
कभी फुदकती द्वारे
चावल औ दानों के टुकड़े,
बीन बीन ले जाती थी।
बैठ घोसलों के भीतर, बच्चोंकी भूख मिटाती थी।
आहट सुन गौरैया की,
बच्चे खुशियों से चिल्लाते थे।
माँ की ममता दानों के टुकड़े,
पाकर निहाल हो जाते थे।
गौरैया का निश्छल प्रेम देख,
मेरी आंखें भर आई थी।
जाने अंजाने माँ की मूरत,
आंखों में मेरी समाई थी।
उस दिन माँ की यादों ने,
मुझको खूब रूलाया था।
एक अबोध नन्ही चिड़िया ने,
प्रेम का पाठ पढ़ाया था।
नहीं प्रेम की कीमत कोई,
और नही कुछ पाना।
अपना सब कुछ लुटा लुटा,
इस दुनिया से जाना।
प्रेम में जीना प्रेम में मरना,
प्रेम मे ही मिट जाना।
ढाई आखर प्रेम का मतलब,
गौरैया से जाना -०-
पता:
सूबेदार पाण्डेय 'आत्मानंद'
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

-०-

***
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