बस्ता लिए आ रहा था, भूखा रमन ।
बोझ तले दब रहा था, जिसका बचपन।।
बोलता ये बच्चा ,लगता हैं बिमार ।
रोटी को लाले पडे ,गरीबी का शिकार ।।
मां सही नहीं जाती, ये भूख की ज्वाला ।
तू ही बता कैसे जाऊं ,मै पढने को शाला।।
अब नही जपना मुझे ,वर्ण अक्षरों की माला।
स्कूल का नाम न लेना, लगाओ मुह पे ताला ।।
मां- देख मेरी दुर्दशा ,तुमको नही खलता।
होता सफल वहीं जो,अभावों मे पलता।।
अब्राहम लिंकन का ,बचपन कैसे बिता ।
करता तेरे जैसे तो, क्या राष्ट्रपति बनता।।
जा,मत जा,शाला, तू नहीं है मेरा लाला।
था पुत्र मेरा कोई , जिसे मैने खो डाला ।।
मां तेरी आंसू का, किमत मै चुकाऊंगा।
भूखे रह कर भी ,मै पढने को जाऊंगा।।
मां की गोद मे हैं जन्नत,सबको ये बताऊंगा।
मेरे नाम से जाने तुम्हें, ऐसा कर दिखांऊगा।।
-०-
पता:
कमलकिशोर ताम्रकार 'काश'
अमलीपदर, गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
-०-
-०-
No comments:
Post a Comment