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Wednesday, 1 April 2020

सोने के अंडे (लघुकथा) - मधुकांत

सोने के अंडे
(लघुकथा)
चुनाव से पूर्व उस क्षेत्र में एक बड़ी घोषणा हुई और देखते ही देखते किसानों की जमीन का अधिग्रहण करके सहकारी शुगर मिल के नाम से एक विशाल मुर्गी की स्थापना कर दी। किसान खुश,,,,,, अब उसको कम परिश्रम ,,,थोड़े चुगे, में सोने का अंडा मिलने लगेगा।
प्रधानमंत्री स्वयं उद्घाटन करने आए थे ।उन्होंने घोषणा की अब किसानों की फसलों का पर्याप्त दाम दिया जाएगा ,जिससे किसानों की आय दुगनी हो जाएगी।
पार्टी चुनाव जीत गई ।सहकारी मिल सिटी मारने लगी ।सरकार, मंत्री, प्रशासक सबकी नजर सोने के अंडों पर रहने लगी, मुर्गी कैसे रहती है? क्या खाती है? इसकी चिंता किसी को नहीं थी।
सरकार आती रही जाती रही। सब उसके अंडों की बंदरबांट करती रही ।मुर्गी कमजोर होती चली गई और अंत में मुर्गी अंडा देने में असमर्थ हो गई।
अब सबकी नजर मुर्गी को एक झटके में हलाल करके डकारने को मचलने लगी। फिर एक दिन चुपचाप औने पौने दामों में अपने लोगों के बीच मुर्गी की बंदरबांट कर ली ।
वर्षों पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के समय लगाया गया शिलालेख सभी करदाताओं का, किसानों का मुंह चिढ़ा रहा था।

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पता:
मधुकांत
रोहतक (हरियाणा)
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