(कविता)
हकीकत में तेरा है ही नहीं।
खा ले - पी ले और देख ले दुनिया को,
खूब कहते हैं खुदा है- है पर आंखों से दिखता नहीं।
सब कहते हैं हम तुम्हारे हैं तुम हमारे हैं,
पर सच में कोई किसी का नहीं।
आने की खुशी में खुशियों से सजाया तुझे,
घुमा मस्ती में रहा बेफिक्र से पर मौत का कोई ठिकाना नहीं।
जिंदगी के जतन में हो सके वह किया,
पर असल में इस जिंदगी का भरोसा नहीं।
जितना हो सके जीवन का जंग जीतना जरूरी था,
लड़ - लड़ कर अपना-अपना कर किया बहुत किंतु वक्त को कोई जीता नहीं।
दो आंखों से देखे तो दुनिया कितनी खूबसूरत लगती है,
अपना-अपना मानकर चला कान्ति दुनिया में कोई किसी का नहीं।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)-०-
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बहुत सुन्दर कविता है आदरणीय !बहुत बहुत बधाई है ।
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