ग़मों का ज़िन्दगी
(ग़ज़ल)
ग़मों का ज़िन्दगी में आना भी लाज़मी है,
मगर हर हाल में मुस्कुराना भी लाज़मी है।
मिले मंज़िल और सफ़र आसां हो जाये।
किसी को अपना बनाना भी लाज़मी है,
ग़र चाहत है हो जाएँ ख़्वाब सभी पूरे अपने,
दिल में ख़्वाहिशों को जगाना भी लाज़मी है।
छा जाए जब घटा दिल पर ग़मों की भारी,
दर्दे-दिल शायरी में बहाना भी लाज़मी है।
महसूस हो सहरा में भी चमन की ख़ुशबू ,
तो फिर कहीं दिल लगाना भी लाज़मी है।
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